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लघुकथाएं--रेत..रेत.. रेत!


जॉनरः हॉरर-3

कहानी--रेत..रेत..रेत!

प. जोधपुर का वह गांव आजतक वीरान ही रहा है।इसके पीछे इसका क्रमबद्ध इतिहास भी रहा हो या कुछ और कटु सत्य लेकिन आज के संदर्भ में वह पूरा गांव अभिशप्त करार कर दिया गया था।
लोगबाग उसका नाम लेते हुए डरते थे।

गांव वैसे तो बेहद ही समृद्ध था।वहां की मिट्टी, वहां के पत्थर, चट्टान सभी के विदेशी मांगे सन्निहित थीं।लेकिन कमी यह थी कि वहां कोई परिवार बस ही नहीं पाता था।

जब भी गांव के नौजवानों के ब्याह की बात आती तो ब्याह के बाद उसे गांव छोड़ देना पड़ता था।
कारण था वहां भटकने वाली  आत्मा।
वह किसी भी नवदंपति को बसने ही नहीं देती थी... इसका कारण क्या था..यह कोई आजतक समझ ही नहीं पाया था।

देवेश एक पत्रकार था।न्यूज चैनल की मजबूरी की गवाही.. टीआरपी बढ़ाने के लिए खौफनाक सच्चाई को बड़े ही चटकारे अंदाज में परोसने के लिए  देवेश को उस गांव में टीवी शूटिंग के लिए भेजा गया था।
देवेश के पास एक अत्याधुनिक कैमरा था जो कि एकसाथ व्वाइस भी रिकॉर्ड कर लेता था और कैमरे में सेटिंग्स लगाकर लगातार विडियों भी शूट कर सकता था।

शाम के धुंधलके फैल चुके थे।पश्चिमी राजस्थान में वैसे भी रात बहुत देर से ही होती थी।

गांव में अपने आने के उद्देश्य बताने के बाद  देवेश ने गांव के सरपंच से रहने के लिए एक ठिकाना उपलब्ध कराने के लिए कहा।
सरपंच जी एक उम्रदार व्यक्ति थे।उन्होंने देवेश को बहुत ही समझाया और उसके टीवी चैनल को हजारों गालियाँ दीं।
वह बारबार देवेश से मिन्नतें भी कीं कि वह ऐसा कोई काम नहीं करे लेकिन देवेश सुनने वालों में कहाँ था!!
हारपारकर सरपंच जी ने उस गांव से लगभग 10किलोमीटर पहले एक जनसराय  उपलब्ध करा दिया।
,,दैखो नौजवान.. तुम सब नवे पढ़े लिखे हो..हाँ जे बात बस याद रखियो कि यहां अंधेरा होने के बाद रौशनी न करना...' उसे' रौशनी की आदत नहीं???,,

देवेश पहले तो जी..जी कहकर स्वीकार कर लिया लेकिन फिर रात्रि भोजन के उपरांत अपने कमरे में आकर अपने मोबाइल और कैमरे के फ्लैश लाइट जलाकर अपना काम करने लगा।क्योंकि उस जगह पर शाम के बाद बिजली काट दी जाती थी।

रात के लगभग नौ बज रहे थे।पूरा इलाका निर्जन सा बन चुका था।कमरे के दरवाजे को अंदर से बंद कर देवेश अपने काम में लगा हुआ था।
इतने में उसके दरवाजे पर किसी ने जोरदार दस्तक दी या।
देवेश बाहर निकला तो देखा सीढियों के नीचे एक महिला अपने नवजात बच्चे के साथ खड़ी थी।
बड़ी उम्मीद लेकर उसकी तरफ देखी जा रही थी।
देवेश ने पूछा
,,क्या बात है?,,

,,हमारा ..,,.वह उस बच्चे की तरफ अपनी अंगुली से इशारा कर न जाने क्या कह रही थी।
देवेश ने अपना फोन चेक किया तो वह अनरिचेबल बता रहा था।
देवेश बड़े ही पेशोपेश में पड़ गया।
वह औरत लगातार कुछ बोलती ही जा रही थी।
देवेश किसे बोले क्या बोल रही है... उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था..
अचानक उसे सरपंच जी की चेतावनी याद आ गई।वहां उन्होंने रौशनी करने के लिए बिल्कुल मना किया था...!
देवेश ने ध्यान से देखा उसके पैर उल्टे थे।बच्चा भी,जिसे कि वह अपने कलेजे से लगाई हुई थी वह भी अब जागकर कुटिल लाल नेत्रों से देवेश को देखे जा रहा था।
देवेश के हाथपैर काँपने लगे वह उल्टे पैर अपने कमरे की ओर भागा...!

दूसरे दिन ः

देवेश अपने धर्मशाला से कई किलोमीटर भीतर एक चट्टान पर मरणासन्न अवस्था पर पड़ा था।
भय के मारे उसकी आँखें बाहर निकल आईं थीं।वह लगातार बड़बड़ा रहा था... क्या बोल रहा था.. कुछ पता नहीं चल रहा था..।
एक बार फिर से एक हॉंटेड जगह अनुत्तरित रह गया था।
सरपंच जी मुस्कुरा उठे।उनकी आँखों में लाल लहू के डोरे उभर आए..!
यह कोई मामूली गांव तो नहीं... आखिर वह खुद कौन हैं...!!!

***
सीमा...✍️🌹
©®
#लेखनी शॉर्ट स्टोरी प्रतियोगिता






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12 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

12-May-2022 08:26 PM

Nice

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Reyaan

11-May-2022 05:17 PM

👌👌👏

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Farida

10-May-2022 08:01 PM

Nice

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